Wednesday 30 December 2015

परीक्षा:-शंका आ समाधान(लेख)

परीक्षा:-शंका आ समाधान(लेख)

जनवरी के महीना,जहाँ नया साल के स्वागत करेला ओहिजा भर महीना गणतंत्र दिवस समारोह के खुशुबू फिजां में फईलल रहेला। एक तरफ मकर संक्रांति,माघ के मेला आ गंगा स्नान के पावन पर्व मनेला त दोसरा तरफ विद्यार्थी जीवन के सबसे महत्वपूर्ण समय के आगमन भी होला।

जनवरी के महीना हमेशा से विद्यार्थियन ला बहुमूल्य रहल बा। फ़रवरी आ मार्च में बोर्ड के इम्तेहान होखेला त अप्रिल आ मई में अलग-अलग प्रतियोगी परीक्षा आयोजित होखेला। डॉक्टर-इंजनियर बनेके सपना सजवले लाखों परीक्षार्थी परीक्षा के ले के अत्यंत आशंकित रहेला लो। एह लेख के माध्यम से हमार प्रयास छात्रन के मन में उठे वाला तमाम तरह के शंका के समाधान बतावे के बा। सही राह चुनल ही सफलता के पहिलका सीढ़ी होला,एहसे सही राह दिखावे के हमार ई एगो छोटा सा प्रयास बा। 

सबसे ख़ास बात इयाद रहे " ढ़ेर पढ़ला से कोई सफल ना होला,सही आ सटीक पढ़ला से सफल होला"। आज प्रतिस्पर्धा के एह जुग में आपन भविष्य सुरक्षित करेला सर्वश्रेस्ठ पढाई कईला के जरूरत बा। ध्यान रहे "आज-कल सलेक्शन ना रिजेक्शन ला परीक्षा होता" एहसे परीक्षक के मन पढ़ला के नितांत आवश्यकता बा। एह ला शुरआत करे खातिर नया साल के पहिला महीना से अच्छा का हो सकेला।

कम समय में प्रभावी तईयारी ला निम्नलिखित सुझाव बा:-

1. ज्यादा सामग्री जुटावे(Cramming) से बचाव

सबसे पहिले ई ध्यान रखला के जरूरत बा की ज्यादा जानकारी जुटावला के कउनो जरूरत ना होला। एहसे तनाव बढे के संभावना रहेला जउना वजह से महत्वपूर्ण अंश ही अक्सर छुट जाला। क्लास नोट्स आ क्लास टेस्ट से बढ़िया पैकेज कुछ ना होला,एहसे ओपर आपन पकड़ मजबूत करे के सबसे अधिक प्रयास रखे के चाँही।

2. पिछिला सालन के प्रश्न पत्र

अइसन देखल गईल बा की कुछ सवाल सीधे ही पिछिला सालन के पुछल प्रश्न पत्र से आ जाला। अंग्रेजी के मशहूर कहावत ह "Question Papers Are The Most Easiest Way To Win The Examination War"।
पिछिला साल के प्रश्न पत्र देखि के अंदाज लाग जाइ की कइसन सवाल आवेला आ ए घरी ट्रेंड में का चलत बा। ई भी आसानी से पता हो जाला की कौन-कौन टॉपिक प विशेष ध्यान देला के जरूरत बा।

3.उचित आराम आ सिलेबस पर ध्यान

बाल मन एकर बार-बार गवाही देला की तनी कम आराम क के ज्यादा पढ़ लिहला प ज्यादा फायदा होई। कई गो रिसर्च ई सुझाव देता की ज्यादा पढ़ला से अधिका जरूरत उचित आराम ले के पढ़ला के बा। एहसे सिलेबस के सही जानकारी बहुत महत्वपूर्ण बा। सिलेबस के टॉपिक के अलावा पढ़ला के एग्जाम के दृष्टि से कउनो फायदा ना होला।  एहसे शरीर के आराम देत स्मार्ट तरीका से पढ़ल ज्यादा जरुरी बा।

4.पुरनका रवईया में बदलाव

एगो परीक्षा कउनो छात्र के भविष्य निर्धारण ना करेला, बाकि एकर मतलब ओके हल्का में लेवे  से नइखे। परीक्षा के रिजल्ट के चिंता छानी प रख के आपन शत-प्रतिशत देवे के प्रयास करे के अनघा जरुरत होला।  परीक्षा के समय में दुनिया से कट के पढ़ाई करे के आदत में बदलाव भी जरुरी बा। तनाव कम करे के एगो उपाय ग्रुप डिस्कशन भी बा। एहसे आपन तैयारी के सही आकलन भी होला।

5.  रिवीजन के सही तरीका

ध्यान रहे की दुनिया में अइसन केहू नईखे जे 60-70 दिन पहिले पढल टॉपिक्स के कांसेप्ट याद रख सके। एहसे एक दिन में एगो चाप्टर तईयार करे के तरीका गलत बा, ओकरा जगह प हर पाठ के तनी-तनी रोज तईयार कइल ज्यादा जरुरी बा। तैयार चाप्टर के लगातार रिवीजन नया चाप्टर तैयार कईला से कही अधिक महत्वपूर्ण बा। काहे की ओह के इयाद रखल नयका ले आसान आ कम समय लेवे वाला होला।

6. परीक्षा के दिन के प्लान कईल

सबसे बड़ आ महत्वपूर्ण काम खुद के परीक्षा के दिन ला मानसिक रूप से तईयार कईल बा। एह खातिर,आपन संस्थान के आवेवाला टेस्ट देवे के चाही। अगर संभव ना होखे त पिछिला साल के प्रश्न पत्र निर्धारित समय में करे के चाहीं। एहसे परीक्षा के माहौल में ढ़ले में सहूलियत होला। ध्यान रहे " अधिकाँश परीक्षा ए घरी माइनस मार्किंग के साथ होता, एहसे गलती कईला से अच्छा ओह प्रश्न के छोड़ आगे बढ़ला के काम बा"। सावधानी हटी दुर्घटना घटी वाला फॉर्मूला एहुजा लागू बा।

7. फ़ास्ट आ जंक फूड्स से अलगाव

परीक्षा के समय जंक फ़ूड से दुरी अत्यंत जरुरी बा। सभे ई सोचत होई की खाये के समय नईखे मिल पावत,एहसे अइसन खाई की परीक्षा के समय शारीरिक आ मानसिक बल बनल रहो। कउनो तरह के भी कमजोरी ना हो सको। एह खातिर दिमाग आ शरीर के तंदरुस्त रखे ला पोस्टिक भोजन करे के चाही। जैसे- दूध-दही,फल,बादाम आदि।

8. ख़ुशी आउर जश्न मनावे में आगे रहल

कउनो भी ख़ुशी आ जश्न आदमी के सबसे ज्यादा चिंतामुक्त करेला आ नया ऊर्जा देला। खुद ही प्रोत्साहित करेला ए से बढ़िया कउनो हथियार नईखे। एहसे समय के ध्यान में राखि के जश्न में शामिल होखला से फायदा बा घाटा ना। एहसे हर मौक़ा के जीअत जम के मेहनत कईला के जरूरत बा। सफलता पुकार रहल बा बस थोडा सा सजग भईला के काम बा...

        समस्त विद्यार्थी लोग के परीक्षा के शुभकामना आ उज्वल भविष्य के मंगल कामना।

अनुराग रंजन
कोटा,राजस्थान।
मशरख,बिहार।
छात्र आ स्वतंत्र लेखक।

Sunday 6 December 2015

माटी

राख सकी माटी के लाज,
दिही आशीष, इहे आज,
भोजपुरी के होखे सम्मान,
इहे बावे हमार अरमान।

माटी पुकारत बाटे आज,
मिल के पूर्ण करे के काज,
इहे बावे हमार आह्वान,
बनल रहो भोजपुरी के ताज।
अनुराग रंजन
छपरा(मशरख)

जाड़ा

जाड़ा अब लागे लागल,
चदरियां खिचाये लागल,
जाकिटवा कसाये लागल,
जुतवा पहिनाये लागल,
माने जाड़वा लागे लागल।
रउआ सभे किहा भी जाड़ा आवे लागल का,इहवाँ त अब भोरहा-संझिहा बुझाय लागल बा। आपन-आपन कपड़ा-लाता टीक कर ली लोनी...जाड़ा में पहिने के।

सरदार वल्लभ भाई पटेल(31 अक्टूबर)

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा काल में ही उन्होंने एक ऐसे अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ाकर उन्हें सही मार्ग दिखाया जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें क्रय करने के लिए छात्रों के बाध्य करते थे।
सन्‌ 1908 में वे विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यश और धाक जमाई। महात्मा गांधी ने जब पूरी शक्ति से
अंग्रेजों
भारत छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख जन-समूह के सामने लोकल बोर्ड के मैदान में इस आंदोलन की रूपरेखा समझाई।
उन्होंने पत्रकार परिषद में कहा, ऐसा समय फिर नह
ीi
आएगा, आप मन में भय न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में कहा, आपको यही समझकर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो आप न भूलें कि आपके हाथ में शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।
सितंबर, 1946 में जब नेहरू जी की अस्थाई राष्ट्रीय सराकर बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत मे विभाजन के पक्ष में पटेल का सपष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से पूर्व गले-से अंग को ऑपरेशन कर कटवा देना चाहिए। नवंबर,1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को अंतिम उपाय मे रूप में तब स्वीकार किया था जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी।
मैंने यह भी शर्त रखी कि देशी राज्यों के संबंध में ब्रिटेन हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस समस्या को हम सुलझाएंगे। और निश्चय ही देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया, देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करना में सरदार को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा।
जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकारें अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया।
सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे। उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा कितनी बलवती थी, इसका उद्धहरण ही काफी है।
जब एक बार वे भारतीय युद्धपोत द्वारा बंबई से बाहर यात्रा पर था तो गोआ के निकट पहुंचने पर उन्होंने कमांडिंग अफसरों से पूछा इस युद्धपोत पर तुम्हारे कितने सैनिक हैं जब कप्तान ने उनकी संख्या बताई, तो पटेल ने फिर पूछा क्या वह गोआ पर अधिकार करने के लिए पर्याप्त है। सकारात्मक उत्तर मिलने पर पटेल बोले- अच्छा चलो जब तक हम यहां हैं गोआ पर अधिकार कर लो। किंकर्तव्यविमूढ़ कप्तान ने उनसे लिखित आदेश देने की विनती की तब तक पटेल चौंके फिर कुछ सोचकर बोले-ठीक है चलो हमें वापस लौटना होगा।
जवाहरलाल इस पर आपत्ति करेंगे। सरदार पटेल और नेहरू के विचारों में काफी मतभेद था फिर भी गांधी से वचनबद्ध होने के कारण वे नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे। गंभीर बातों को भी वे विनोद से कह देते थे। कश्मीर की समस्या को लेकर उन्होंने कहा था, सब जगह तो मेरा वश चल सकता है पर जवाहरलाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा।
उनका यह कथन भी कितना सटीक था भारत में केवल एक व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है- जवाहरलाल नेहरू शेष सब सांप्रदायिक मुसलमान हैं। 15 दिसंबर 1950 को प्रातःकाल 9.37 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया, जिसकी क्षति पूर्ति होना दुष्कर है। यह की सच है कि गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया तो नेहरू ने उस कल्पना और दृष्टिकोण को विस्तृत आयाम दिया। इसके अलावा जो शक्ति और संपूर्णता कांग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम था। आपकी सेवाओं, दृढ़ता व कार्यक्षमता के कारण ही आपको लौहपुरुष कहा जाता है।
आज भी हम भारत के ताजा परिप्रेक्ष्य पर गौर करें, तो देश का लगभग आधा भाग सांप्रदायिक एवं विघटनकारी राष्ट्रद्रोहियों की चपेट में फंसा दिखाई देता है, ऐसी संकट की घड़ी में सरदार पटेल की स्मृति हो उठना स्वभाविक है।
ज्ञातव्य है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने ज्वलंत प्रश्न था कि छोटी-बड़ी 562 रियायतों को भारतीय संघ कें कैसे समाहित किया जाए। जब इस जटिल कार्य को जिस महापुरुष ने निहायत सादगी तथा शालीनता से सुलझाया, वे थे आधुनिक राष्ट्र निर्माता लौह पुरुष।

प्रयास

हर रतिया भिनसहरा के इन्तेजार करी,
जिनिगिया रंगीन बा,एकरा से प्यार करी।
ऊ बेरा भी आई,जेकर रउआ इन्तेजार बा,
बस अपना प भरोसा आ वक़्त प ऐतबार करी।
तनिये सा ही सही,बाकि अपनो से प्यार करी,
रोज सभका के हसावे के एगो प्रयास करी।
अनुराग रंजन
छपरा(मशरख)

कीमत(कहानी)

कीमत (कहानी)
स्विट्जेरलैंड ऑइल प्रकाश के दू बरिस हो गईल रहे। ऊ उहवाँ एगो बरहन कंपनी में काम करत रहस। एक दिन उनकर मोबाइल बाजल त देखले की माई हिअ,फोन त उठा लिहले बाकि उनका लागल की भोजपुरी में बतिआएम त कंपनी के लोग का कही। ऊ फोन उठा के कहले रास्कल आई हैव टोल्ड यू नॉट टू कॉल यू इन ऑफिस टाइम,आ फोन झटाक से काट दिहले,आ खूबे मुस्कइले। अब जवन माई के हिंदी तक ठीक से ना बोले आवे , उ बेचारी इंग्लिश का समझित। सांझी के फ़ोन क के माई के लगले झारे की तोहनी के ना बुझाला की इहवाँ केतना काम बा,कबो फ़ोन क देहेलु। ए से पहिले कि माई कुछ कहित फेर फोन काट दिहले। कुछ दिन बाद फेरु ऑफिस में रहले त फोन बाजल,माई त समझइलो प ना समझले आ फोन रिसीवे ना कईले। अब जब फोन आवे त काट देस। एक दिन सांझी के माई के फेर फोन आईल त फोन उठावतहि माई बोलली की बेटा तहार बाबूजी...का भईल बाबूजी के...पूरा बात सुन के ऑफिस में खबर कईले आ टिकट कटा के प्लेन में बैठ गईले। घरे पहुचलें त बाबूजी मर चुकल रहले। गॉव जवार के लोग उनका से लागल कहे की प्रकाश टाइम प आइल रहित त सिन्हा जी बाँच गईल रहते। बेचारा का करित बुड़ाडी में पैसा बिना मर गइल ह। अब प्रकाश के बुझा गईल रहे की ऊ माई के फोन काट के कतना बरका गलती कर देले रहले। उनका अपना बाबूजी के एकेगो बात दिमाग पर नाचत रहे की "बेटा कबो अपना भाषा के नीच मत समझिह,आ ओकरा से कउनो समझोता मत करिह"।
प्रकाश ओहि दिन से प्रण कईले की अब ऊ भोजपुरी खातिर जिहिये आ मरिहे। भोजपुरी अब फेन से उनकर आपन हो गईल बाकि बाबजी के जिंदगी के कीमत चूका के।
नोट: जब रऊओ सभे का साथे कुछ अइसही होई तब जागेंम लोनि का?? जागी आ भोजपुरी के सम्मान करी। भोजपुरी के कुछ दिही,लिही मत। आ बोली,हिचकिचाई मत। जय भोजपुरी।

छठ पूजा 2015

आज जब सब तरफ लोग पुराने रीती-रिवाजो को भुल कर एक नई संस्कृति की गाथा रचने में लगे पड़े है,ऐसे में जब भी यह विचार आता है की वह कौन सा व्रत/पर्व या आयोजन है जो आने वाले कई दशकों तक अपनी संस्कृति और महता बनाये रखने में कामयाब होगा? तो स्वतः ही ध्यान लोक समन्वय तथा आस्था के महापर्व छठ की तरफ आ टिकता है। सालों से देखता आ रहा हूँ,कई पर्वो के आयोजन के तरीके बदल गए,लोग टुकड़ो में बट कर आयोजन करने लगे। लेकिन जब बात छठ पर्व पर आकर टिकती है तो नजारा खुद-ब-खुद बदल जाता है। कोई किसी को ईख पहुँचा रहा होता है।
तो कोई किसी के लिए बाजार से पुजन सामग्री ला देता है। चौतरफा मदद के हाथ खड़े दिखाई देते है। सारे भेदभाव और मतभेद भुलाकर लोग
छठ पर्व की गूँज को प्रत्येक वर्ष और भी दुर तक पहुचाने की हरसंभव प्रयास करते है। लाखों की संख्या में परिजन घर को पहुँचते है,तो सिर्फ छठ के आयोजन के लिए। छठ एकमात्र ऐसा त्यौहार है,जहाँ जानी दुश्मनी तक को परे रखकर आपसी सद्भाव का परिचय प्रस्तुत किया जाता रहा है और किया जाता रहेगा। अत: लोक समरसता के ईस पर्व की असीम शुभकामनाये । ईस आशा और विश्वास के साथ की अगले वर्ष छठ पर्व की धमक और आभा और फैलेगी,एक बार फिर शुभकामनाये एवम् बधाईया।
अनुराग रंजन
छपरा(मशरख)

रानी लक्ष्मी बाई(19 नवंबर)

जन्मदिन विशेष)
महिला सशक्तिकरण के जनक:-रानी लक्ष्मीबाई

जब भी महिला सशक्तीकरण के चर्चा छिड़ेला,केनहूँ महिला खातिर कउनो आवाज उठेला। त,हमार टोही मन एकेगो सवाल करेला की एकर अगुआ के रहल होई??उ मर्दानी के रहल होई जे एकरा खातिर सबका से पहले प्रयास कईले होइ??

समूचा विश्व के वीरता के राह दिखावे वाली।शौर्य,तेज,दया,करुणा आउर देशभक्ति के जज्बा जेकर पोर-पोर में भरल रहे। माई के मनु,बाजीराव के छबीली आ सुभद्रा कुमारी चौहान के खूब लड़ी मर्दानी,ऊ त झाँसी वाली रानी रहली। हमनी के प्रेरणा आउर सभकर चहेती रानी लक्ष्मीबाई के जन्म 19 नवम्बर 1835 में भईल रहे।

माई भागीरथी देवी आ बाबूजी मोरपंत तांबे के उच्च संस्कार से बबुनी मनु के मन आउर ह्रदय महान गुणन से पाटल रहे।लईकाइये में माई से धार्मिक,सांस्कृतिक आउर शौर्य गाथा सुनके मनु के मन में देशप्रेम आ वीरता के लहर उठे लागल रहे। उनकर नाम मणिकर्णिका रखाईल बाकि सभे प्यार से मनु पुकारत रहे।

पांच साल के उमर में माई के साथ छूटल त मनु बिठूर आ गईली। उहवाँ मल्लविद्या,घुड़सवारी आ शस्त्रविद्या सिखली। उनकर बाबूजी अपना संघे उनका के बाजीराव के दरबार में ले जाई। चंचल आ सुन्दर मनु सबके भा गईली। बाजीराव प्यार से उनका के 'छबीली' बोलावस।

मनु के बिआह 1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव के संघे बहुत धूम-धाम से भईल। बिआह के बाद लक्ष्मीबाई नाम रखाईल। एह तरह से काशी के बेटी झांसी के रानी लक्ष्मीबाई बन गईली।
1851 में पुत्र-रत्न के आगमन भईल,बाकि ईश्वर के मर्जी कुछ आउरे रहे। बेटा भईला के जश्न ढेर दिन तक ना मन सकल,तीन महीना के होत-होत बेटा चल बसल। गंगाधर राव से ई आघात ना सहाईल। लोग के निहोरा पर एगो पुत्र गोद लिआइल आ नाम दामोदर राव रखाइल। गंगाधर के मरला के बाद जनरल डलहोजी,दामोदर राव के झाँसी के उत्तराधिकारी माने से मना क दिहलस। रानी अग्रेंजन के खिलाफ युद्ध के घोषणा कईली आ कहली की झाँसी अंग्रेज के कउनो कीमत प ना दिहे।

एह तरहा,सन सनतावन में स्वतंत्रता के पहिलका बिगुल फुकाँ गईल। स्वतंत्रता के आग समूचा देश में धनके लागल। रानी ईटा के जबाब पत्थर से दिहली। अंग्रेजन के डेग उखड़े लागल। रानी के साथे मुन्दर आउर झलकारी सखी भी आ डटल लोग। किला के किलाबंदी भईल। रानी के कौशल देखि के अंग्रेजन के सेनापति सर हथरोज भी अकचकाईल।

आठ दिन तक गोला बरसावला के बादु फिरंगियन के हाथे किला ना लगल। तब कूटनीति क के झाँसी के ही विस्वासघाति सरदार दूल्हा सिंह के मिला के,दक्षिण ओरी के दुआरी खुलवा लिहलन सन। अंग्रेज सेना किला में घुस गईल। लूटपाट आ मार-काट के बेरहम दृश्य बनल। ऐगो हाथ में तलवार लेले,पीठ प बेटा के बान्हले रानी रणचंडी के रूप ध लिहली। शत्रु दल के संहार करे लगली। झाँसी के वीर सैनिक भी फिरंगीयन प पिल पड़ल लोग।जय भवानी आ हर-हर महादेव से रणभूमि गूँज उठल। रानी अंग्रेजन से घिर गईली। कुछ विस्वासपात्र लोग के सलाह पर रानी राह बनावत कालपी के तरफ बढ़ गईली। दुर्भाग्य बस एगो गोली रानी के गोड़ में लागल आ गति धीरे भईल। अंग्रेज सिपाही उनका निचिका पहुँचल। रानी आपन घोड़ा दौड़वली बाकि दुर्भाग्य से एगो नाला बीच रहिया में आ गईल। ओहि बेर दुसरका गोरा सैनिक हृदय प वार कई देलस। अनघा घायल भईला के बादो ऊ दुनो आकर्मीयन के वध क दिहली।

पठान सरदार गौस खाँ अभियो रानी के संघे रहस। उनकर रोद्र रूप देखि के सब भाग गईलन सन। स्वामिभक्त रामदेव देशमुख अंत तक रानी के साथ दिहले। ऊ रानी के खून से सनल देह के निचके बाबा गंगादास के कुटिया पहुँचइले। रानी व्यथा से व्याकुल पिए के पानी मंगली। गंगादास पानी पिअइलन। रानी अपना सम्मान खातिर हर घरी सजग रहलीं। उनकर इहे कामना रहे कि अगर उ जंग के मैदान में मृत्यू के गला लगावास,तबो उनकर शव अंग्रेजन के हाथे ना लागे। अद्भुत अउर अदम्य साहस के संघे अंतिम बेरा ले लड़े वाला रानी के अंत 17 जून 1858 में भईल। बाबा गंगादास हाल्दिये कुटिया के ही चिता बना के उनकर अंतिम संस्कार क देले,जेसे अंग्रेज उनका के छु भी ना सकलन सन।ग्वालियर में आजो रानी के समाधी उनकर गौरव-गाथा इयाद दियावेला।

एहसे से हमरा नजरिया में ऊ पहिलका मर्दानी रहली जे महिला के आदर्श भईली। ऊ एह बात के उम्मीद जगवली की मेहरारू लोग कमजोर नइखे आ उहो लोग के सम्मान बा। आ ओह खातिर सभे के ताल मिलावे के होई।

अइसन वीरांगना से अजुओ राष्ट्र गर्वित आ प्रफुलित बा। रानी लक्ष्मीबाई के शब्दन में बान्हल मुश्किल बा। ऊ त समूचा विश्व में अदम्य साहस के चिन्हासि हई। अश्रुपूर्ण शब्दांजली से शत-शत नमन करत बानी।

समय के अभाव बा

मौका ई बरियार बा,
अप्रिल में एग्जाम बा,
हॉत अभी पढाई बा,
समय के अभाव बा।
प्रयास होत बरियार बा,
आशीर्वाद के चाह बा,
चापटर सब तईयार बा,
समय के अभाव बा।
तेज भईल रफ़्तार बा,
लेख पर लगाम बा,
टार्गेटवा पर ध्यान बा,
समय के अभाव बा।
विश्वास ईहे जोगावे के बा,
फेरु वापस आवे के बा,
भोजपुरी से बहुते प्यार बा,
खालि समय के अभाव बा।
भोजपूरी ला जान बा,
ईहे हमार गुमान बा,
ईहे हमार विचार बा,
भोजपुरी हमार शान बा।

काश मेरी भी एक गर्लफ्रेंड होती...

मांगता कभी जो चंद लम्हे तो दिन वो तमाम देती,
होता कभी उदास तो खुशियाँ वो हजार देती,
दिख जाता कहीं उम्मीद तो सपनो की वो बौछार देती,
मुश्किलें आती कभी तो सोलूशन्स वो हजार देती।
बरसात कभी आती तो छाते को वो तान देती,
परेशानियों के पिटारों को तो हवा में यूँही वो उछाल देती,
जमाने के तानों को तो अपनी वो मुस्कान देती,
मेरी हर एक अदा पर ही तो वो अपनी जान देती।
काश मेरी भी एक गर्लफ्रेंड होती तो मेरे हर लम्हे को वो सवाँर देती।
अनुराग रंजन
छपरा(मशरख)

कल्याण हो

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स्वयं का प्रयास हो,
उम्मीद का संचार हो,
अपने ऊपर विश्वास हो,
तो जीत का आगाज हो।
खुद का अंदाज हो,
सब का साथ हो,
कर्म पे ही ध्यान हो,
तो प्रतिभा का सम्मान हो।
विरक्तियों का त्याग हो,
सद्भाव का प्रवाह हो,
रिश्तों की परवाह हो,
तो जन-जन का कल्याण हो।
अनुराग रंजन
छपरा(मशरख)

माटी के फर्ज

माटी के फर्ज निभावे के बा,
सभका के रहिया पे लावे के बा,
उम्मीद के अलख जगावे के बा,
भोजपुरी के पहिचान दिलावे के बा।
असरा सभकर पुरावे के बा,
सभका के आपन बनावे के बा,
स्वाभिमान सभकर जगावे के बा,
भोजपुरी के शान बढ़ावे के बा।
अनुराग रंजन
छपरा(मशरख)

बबुआ आ पढाई

नामवा लिखा गइल,
फिसवा भरा गइल,
कॉपिया किना गइल,
बस्ता में रखा गइल।
स्कुल में उ आ गइल,
मास्टर त पढ़ा गइल,
ट्यूशनवो धरा गइल,
प्रयास खूब बढ़ा गइल।
लइकन के उ भा गइल,
पढाई खूब उ क गइल,
परीछा भी दिया गइल,
रिजल्ट भी आ गइल।
बबुआ त छा गइल,
मिठाई भी किना गइल,
घर-घर में बटा गइल,
मनवा के हर्षा गइल।

जन्मदिन राजेंद्र प्रसाद(3 दिसंबर)

राजेन्द्र प्रसाद भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति है। उनका जीवन हमारा सार्वजनिक इतिहास है। वें सादगी, सेवा, त्याग और देशभक्ति के प्रतिमूर्ति थे। स्वतंत्रता आंदोलन में अपने आपको पूरी तरह से होम कर देने वाले राजेंद्र बाबू अत्यंत सरल और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। वे सभी वर्ग के लोगो से सामान्य व्यवहार रखते थे। लगभग 80 वर्षों के उनके प्रेरक जीवन के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे चरण को करीब से जानने का एक बेहतर माध्यम उनकी आत्मकथा है।

डॉ प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था। उनके पूर्वज संयुक्त प्रांत के अमोढ़ा नाम की जगह से पहले बलिया और फिर बाद में सारन (बिहार) के जीरादेई आकर बसे थे। पिता महादेव सहाय की तीन बेटियां और दो बेटे थे, जिनमें वें सबसे छोटे थे। प्रारंभिक शिक्षा उन्हीं के गांव जीरादेई में हुई। पढ़ाई की तरफ इनका रुझान बचपन से ही था। 1896 में वें जब पांचवी कक्षा में थे तब बारह वर्ष की उम्र में उनकी शादी राजवंशी देवी से हुई। आगे पढाई के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय में आवेदन पत्र डाला जंहा उनका दाखिला हो गया और 30 रूपए महीने की छात्रवृत्ति मिलने लगी। उनके गांव से पहली बार किसी युवक ने कलकत्ता विश्विद्यालय में प्रवेश पाने में सफलता प्राप्त की थी। जो निश्चित ही राजेंद्र प्रसाद और उनके परिवार के लिए गर्व की बात थी।

1902 में उन्होंने कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। 1915 में कानून में मास्टर की डिग्री पूरी की जिसके लिए उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्होंने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। इसके बाद पटना आकर वकालत करने लगे जिससे इन्हें बहुत धन ओर नाम मिला।

बिहार मे अंग्रेज सरकार के नील के खेत थे। सरकार अपने मजदूर को उचित वेतन नहीं देती थी। 1917 मे गांधीजी ने बिहार आकर इस समस्या को दूर करने की पहल की। उसी दौरान डॉ प्रसाद गांधीजी से मिले और उनकी विचारधारा प्रभावित हुए। 1919 मे पूरे भारत मे सविनय आन्दोलन की लहर थी। गांधीजी ने सभी स्कूल, सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने की अपील की। जिसके बाद डॉ प्रसाद ने अंपनी नौकरी छोड़ दी।

चम्पारण आंदोलन के दौरान राजेन्द्र प्रसाद गांधी जी के वफादार साथी बन गए थे। गांधी जी के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने अपने पुराने और रूढिवादी विचारधारा का त्याग कर दिया और एक नई ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। 1931 में काँग्रेस ने आन्दोलन छेड़ दिया। इस दौरान डॉ प्रसाद को कई बार जेल जाना पड़ा। 1934 में उनको बम्बई काँग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। वे एक से अधिक बार अध्यक्ष बनाये गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। इस दौरान वे गिरिफ्तार हुए और नजर बंद कर दिए गए|

भले ही 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई लेकिन संविधान सभा का गठन उससे कुछ समय पहले ही कर लिया गया था जिसके अध्यक्ष डॉ प्रसाद चुने गए थे। संविधान पर हस्ताक्षर करके डॉ प्रसाद ने ही इसे मान्यता दी।

भारत के राष्ट्रपति बनने से पहले वे एक मेधावी छात्र, जाने-माने वकील, आंदोलनकारी, संपादक, राष्ट्रिय नेता, तीन बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, भारत के खाद्य एवं कृषि मंत्री, और संविधान सभा के अध्यक्ष रह चुके थे।
26 जनवरी 1950 को भारत को डॉ राजेंद्र प्रसाद के रूप में प्रथम राष्ट्रपति मिल गया। 1962 तक वे इस सर्वोच्च पद पर विराजमान रहे। 1962 मे ही अपने पद को त्याग कर वे पटना चले गए ओर जन सेवा कर जीवन व्यतीत करने लगे।

1962 में अपने राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से नवाजा गया।

28 फरवरी, 1963 को डॉ प्रसाद का निधन हो गया। उनके जीवन से जुड़ी कई ऐसी घटनाएं है जो यह प्रमाणित करती हैं कि राजेन्द्र प्रसाद बेहद दयालु और निर्मल स्वभाव के व्यक्ति थे। भारतीय राजनैतिक इतिहास में उनकी छवि एक महान और विनम्र राष्ट्रपति की है।

1921 से 1946 के दौरान राजनितिक सक्रियता के दिनों में राजेन्द्र प्रसाद पटना स्थित बिहार विद्यापीठ भवन में रहे थे। मरणोपरांत उसे 'राजेन्द्र प्रसाद संग्रहालय' बना दिया गया।