वक़्त के मांग के आपन ढ़ाल जे बना पावेला।
बिगड़ल भगिया के उ खुद ही चमकावेला।।
पपनिया के वक़्त के साथ जे झपकावेला।
राह के कांटन के उ खुद ही हटा पावेला।।
निर्मल जे आपन सोच के राख पावेला।
संस्कृति आ संस्कार के उहे बचा पावेला।।
जाति,धर्म आ व्यक्तिगत रंजिश से ऊपर जे उठ पावेला।
समाज में फईलल कुरीतियन के उहे मिटा पावेला।।
परम्परा आ विश्वास के जे जोगा पावेला।
सबसे अलग पहचान उहे बना पावेला।।
खुद-ब-खुद सबका के जे आपन बना पावेला।
सभकर दिलवा में जगहिया उ खुदे बनावेला।।
bahut sunder bhojpuri kavita,badhayi.
ReplyDeleteआभार चाची जी,जय भोजपुरी।
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