Sunday 10 January 2016

उस पत्थर ने कुछ तो कहा होगा???

शायद उस पत्थर ने आखिर तक प्रतिकार किया हो? मानवता और भाईचारे की सैकड़ो दुहाईयाँ दी हो? कहा हो,अरे जनाब किसे मारना चाहते है? आखिर उछालना किसपे चाहते हो? उस डॉक्टर को जिसने तुम्हे मौत के मुँह से निकाला था या फिर उस मास्टर को जिसने तुम्हारे बाल-बच्चों को पढ़ाकर काबिल बनाया।
उसने इतिहास का पाठ भी समझाया हो? कहा होगा,गवाह हूँ मै इन उन्मादी घटनाओं का। इससे आम-जनता को कुछ हासिल नही होता है। हाँ,ये अलग बात है की कुछ चंद मजहब और धर्म के सिपालसहारों का मकसद स्वतः पूरा हो जाता है। बताया होगा की धार्मिक जज्बात को मोहरा बनाकर वे कुर्सी और लालबत्ती को अपना बना लेते है,और खड़ा रह जाता है आमजन वही का वही ,जहाँ वो पहले खड़ा था। ये झनिक प्रवाह तक़दीर को नही बदल पाते।

उसने कहा होगा,जनाब कम से कम आप तो ये ना कीजिए। आपने तो पूर्व में भी कई दफा देखे है ऐसे उन्माद। आपको तो पता ही है,इनसे कुछ नही होता है। हाँ,पीढियां जरूर कई साल पीछे चली जाती है। कई दफा विनती भी की होगी, की जनाब नवयुवकों को पीछे मुड़ने का आदेश दीजिये। अपने ही भाइयों, अपने ही साथियों को सिर्फ धर्म के नाम पर हो रहे हमले से बचाईये।फिर भी आखिरकार आपने उस पत्थर के अथक प्रयास को दरकिनार कर उसे उछालने का अंतिम फैसला लिया होगा।

तब आपको इस बात का आभास भी न रहा होगा की वो पत्थर आपने किसी अन्य धर्म के लोगो के ऊपर ना उछालकर खुद के पाँव पर चलाया है। न्यूटन महोदय के त्तृतीये नियम " Every action has its equal & opposite reaction" का आपको भान  भी न रहा होगा। यकीन मानिये छनिक आवेश में आकर आपने चंद मजहबी ताकतों का भला किया है और कुछ नही। मुझे इस बात का कोई अफ़सोस नही की आपने पत्थर उछाला क्योंकि जो पत्थर(कुल्हाड़ी) आपने उछाला है ना,वो आपके ही आने वाली पीढ़ियों के सीने पर वार करने वाली है...
अनुराग रंजन
छपरा(मशरख)

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