Friday 5 February 2016

"ना जाने कईसे दू..."

किताब-कॉपी के छोड़ फेसबुक आ ट्वीटर पढ़ल जात बा।
भलही,काहेना टॉप करेके सपना रोज देखल जात बा।।

क्लास छोड़ के फ़िल्म रोज देखल आ देखावल जात बा।
भलही, काहेना माई-बाबूजी के भरोसा तमाम रोज दिहल जात बा।।

मैसज आ वीडियो चैट ला इंटरनेट के कनेक्सशन लिहल जात बा।
भलही,काहेना किताब-कॉपी किने के कह के रुपिया मँगावल जात बा।।

पिज्जा-बर्गर आ कोल्डड्रिंकस के आर्डर दिहल जात बा।
भलही,काहेना दुध-दही से दुरी रोज बढ़ल जात बा।।

पढ़ाई के वजह से व्यस्तता के रोना हरवक़्त रोवल जात बा।
भलही,काहेना सोशल मीडिया प ऑनलाइन हरदम भेटा जाईल जात बा।।

टोकले प ही सही,हमरा से बोलल छोड़ के पढाई करत उ दिन-रात बा।
ना जाने कईसे दू, पढ़ाई के कीमत ओकरो अब बुझात बा।।

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